Holi 2011 a poetic Holi

 


रंग वोही है , वो दौर नहीं … !

कुछ लोग नए है, और दौर (समय) नयी 

दुनिया थी रंगों वाली वो, वो सकस नहीं, 

और वो रंग (मस्ती ) नहीं 

पर यादो की सफ़ेद चादर  पे,

 बिखेरे थे, मिल के हम ने जो, 

वो रंग पड़े है वोही कही…

मैली है चादर रंगों से,

और रंगने वाले है, दूर कही …!

कब वक़्त मिले की खोल सकू, और,

खुल जाए अगर वो चादर कही,

फिर समझो की इस होली मैं,

तुम पड़े , हुए हो वोही कही .!

रंग वोही है, और दौर नयी

 पर यादो की सफ़ेद चादर पे .!

 

By Graces & Wishes Jsssdn 🙂